अध्याय 1: बिना कीमत की आवाज़ बडकोट की सुबह अक्सर कच्ची सड़क और कच्चे मकानों से लिपटी होती है लेकिन अर्जुन के लिए यह सिर्फ राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का प्रतिबिंब नहीं था, बल्कि उसकी भीतरी विद्रोही स्…
अध्याय 9: अधूरी उड़ान (कुछ दिनों बाद अरुण और उसका पिता शहर आते हैं। ) (स्थान: शहर में अरुण का कमरा। कमरे के भीतर चंद्रमोहन चुपचाप कपड़े और किताबें बैग में रख रहे हैं। अरुण खिड़की के पास खड़ा है, और…
अध्याय 8: नरक के दूत (अरुण का कमरा अब पूरी तरह बदल चुका है। धूप, अगरबत्ती, गुरु की तस्वीर, और दीया लगातार जल रहा है। कमरे में शांति है — पर वो शांति अब एक अंतर्मन की उथल-पुथल से भारी लग रही है। अरुण…
अध्याय 7 कोई आ रहा है... (अरुण गेट पर खड़ा है। चारों ओर अजीब सी नीरवता है। दूर कहीं कुत्ते भौंकते हैं, पर कोई आता नहीं।) अरुण (धीरे से, खुद से): "कहीं प्रधानमंत्री आने का वक़्त तो नहीं बदल गया?…
अध्याय 6 शीशे में प्रधानमंत्री (काव्या धीरे-धीरे कमरे को चारों ओर से निहारती है। उसकी नज़र अलमारी की ओर जाती है, जहाँ कबीर पंथी गुरु की एक तस्वीर लगी है। उसके पास एक छोटी सी चारनामृत की बोतल रखी हु…
अध्याय 5 कमरे की चुप बिखरी किताबें अरुण (मन में फुसफुसाते हुए): "अब मैं अमर हूँ... अब कोई ज़हर, कोई बीमारी, कोई दुःख मुझे छू नहीं सकता।" (उसके चेहरे पर एक शांति थी— वह शांति उसे सुकून नही…
अध्याय 4 धुंध की परतें (सुबह के ग्यारह बजे हैं। अरुण अपने कपड़ों की बाल्टी को छोड़कर बाथरूम से बाहर निकल आया। शरीर में हल्का कंपन हो रहा है। चेहरे पर भूख और थकावट, पर उससे भी ज़्यादा एक विचित्र बेच…
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